मोदी सरकार की बढ़ी चिंता, देश पर आने वाले है बड़ा संकट
मोदी सरकार की बढ़ने लगी चिंता लॉकडाउन के कारण देश की GDP में रिकॉर्ड 23.9 फीसदी गिरावट दर्ज होने के अब दूसरी तिमाही में गिरावट का स्तर घटकर इकाई अंकों में रह जाने की उम्मीद है लेकिन इतना लगभग तय लग रहा है कि तकनीकी तौर पर देश आर्थिक मंदी में फंस चुका है, क्योंकि सितंबर तिमाही में लगातार दूसरी बार GDP में गिरावट आ सकती है ।
सरकारी संस्था एनएसओ आज शाम दूसरी तिमाही यानी जुलाई-सितंबर का GDP आंकड़ा जारी करेगी. हाल में आरबीआई के एक अधिकारी ने कहा था कि इस तरह लगातार दो तिमाहियों में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में गिरावट के साथ देश पहली बार मंदी के चक्र में फंस गया है. कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के असर से पहली तिमाही में जीडीपी में 23.9 फीसदी की गिरावट आई थी.
पहली बार आर्थिक मंदी में फंसा भारत
केंद्रीय बैंक के शोधकर्ताओं ने तात्कालिक पूर्वानुमान विधि का प्रयोग करते हुए अनुमान लगाया है कि जुलाई-सितंबर तिमाही में जीडीपी का आकार 8.6 फीसदी तक घट जाएगा. इससे पहले आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष में जीडीपी में 9.5 फीसदी की गिरावट का अनुमान जताया था. केंद्रीय बैंक के शोधकर्ता एवं मौद्रिक नीति विभाग के पंकज कुमार की ओर से तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत तकनीक रूप से 2020-21 की पहली छमाही में अपने इतिहास में पहली बार आर्थिक मंदी में फंस गया है.
क्या है एक्सपर्ट्स की राय
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI-Reserve Bank of India) को 8.6 फीसदी की गिरावट का अनुमान है. वहीं, बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच की रिपोर्ट में GDP के 7.8 फीसदी गिरने का अनुमान लगाया गया है. मॉर्गन स्टेनली को जीडीपी ग्रोथ में 6 फीसदी की गिरावट का अनुमान है इसके अलावा ICRA ने जुलाई-सितंबर तिमाही में भारत की आर्थिक ग्रोथ के 9.5 फीसदी गिरने का अनुमान लगाया है CARE रेटिंग ने GDP ग्रोथ में 9.9 फीसदी की गिरावट का अनुमान लगाया है।
सबसे सरल शब्दों में किसी भी अर्थव्यवस्था में मंदी का एक चरण एक विस्तारवादी चरण के बराबर है दूसरे शब्दों में, जब वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, जिसे आम तौर पर GDP द्वारा मापा जाता है, एक तिमाही (या महीने) से दूसरे में चली जाती है, तो इसे अर्थव्यवस्था का एक विस्तारवादी चरण (expansionary phase) कहा जाता है. जब GDP एक तिमाही से दूसरी तिमाही में कम हो जाती है, तो अर्थव्यवस्था को मंदी के दौर में कहा जाता है।
वास्तविक मंदी से यह किस तरह अलग है?
जब अर्थव्यवस्था की गति लंबे दौर के लिए धीमी होती है, तो इसे मंदी कहा जाता है. दूसरे शब्दों में, जब जीडीपी एक लंबी और पर्याप्त अवधि के लिए कम होती है तो मंदी कहलाती है. वैसे मंदी की कोई स्वीकार्य परिभाषा नहीं है. लेकिन ज्यादातर अर्थशास्त्री इसी परिभाषा से सहमत हैं जिसे अमेरिका में नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च (NBER) भी उपयोग करता है।
मंदी के लिए किन फैक्टर्स की गणना की जाती है?NBER के अनुसार, एक मंदी के दौरान आर्थिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण गिरावट आती है. यह कुछ महीनों से एक साल से अधिक वक्त तक जारी रह सकती है. NBER की बिजनेस साइकिल डेटिंग कमेटी आमतौर पर किसी निर्णय पर पहुंचने के लिए GDP वृद्धि के अलावा दूसरे फैक्टर्स जैसे कि रोजगार, खपत आदि को भी देखती है.
कैसे पता चलता है कि देश में मंदी है भी या नहीं?आर्थिक गतिविधियों में गिरावट की “गहराई, प्रसार, और अवधि” को देखने के लिए यह भी निर्धारित किया जाता है कि कोई अर्थव्यवस्था एक मंदी में है भी या नहीं. उदाहरण के लिए, अमेरिका में आर्थिक गतिविधियों में हाल में सबसे ज्यादा गिरावट आई, जिसके पीछे कोरोना महामारी है. वहां की आर्थिक गतिविधियों में गिरावट इतनी ज्यादा हुई है कि इसे एक मंदी के तौर पर माना गया है. भले ही यह काफी कम समय के लिए रही हो.
अर्थव्यवस्था में तकनीकी मंदी क्या होती है?“मंदी” के पीछे आर्थिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण और स्पष्ट गिरावट है. लेकिन, डेटा विश्लेषण से पता चलता है कि यह भी नाकाफी है. उदाहरण के लिए, क्या जीडीपी में गिरावट के लिए एक तिमाही ही आर्थिक गतिविधियों को तय करने के लिए पर्याप्त होगी? या बेरोजगारी या व्यक्तिगत खपत को भी एक फैक्टर के रूप में अच्छी तरह से देखा जाना चाहिए? यह पूरी तरह संभव है कि जीडीपी कुछ समय के बाद बढ़नी शुरू होती है, लेकिन बेरोजगारी का स्तर पर्याप्त रूप से नहीं गिरता है।
2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान, NBER ने मंदी की आखिरी तारीख जून 2009 आंकी, लेकिन कुछ क्षेत्रों में रिकवरी काफी देर तक होती रही। उदाहरण के लिए NBER के अनुसार, गैर कृषि पेरोल रोजगार अप्रैल 2014 तक अपने पिछले पीक से अधिक नहीं था।
मूडीज ने आर्थिक वृद्धि दर अनुमान बढ़ाया –मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने कैलेंडर वर्ष 2020 के लिए भारत के आर्थिक वृद्धि दर अनुमान को बढ़ाकर (-)8.9 फीसदी कर दिया है पहले (-)9.6 फीसदी वृद्धि दर का अनुमान जताया गया था रेटिंग एजेंसी ने बृहस्पतिवार को कैलेंडर वर्ष 2021 के लिए आर्थिक वृद्धि दर के अपने अनुमान को 8.1 फीसदी से बढ़ाकर 8.6 फीसदी कर दिया है।
ग्लोबल रिसर्च और ब्रोकिंग हाउस गोल्डमैन सैक्स (Goldman Sachs) कैलेंडर ईयर 2021 में भारत की जीडीपी 10 फीसदी (GDP growth) की दर से बढ़ सकती है।
बता दें दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में यह सबसे ज्यादा है Pfizer और BioNTech की वैक्सीन की खबर के बाद रिसर्च कंपनियों का अनुमान है कि भारत समेत दुनिया की सभी अर्थव्यवस्थाओं में तेजी आ सकती है वहीं, 2022 में यह ग्रोथ करीब 7.3 फीसदी रह सकती है।
गोल्डमैन सैक्स के विश्लेषकों को उम्मीद है कि वैक्सीन आने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी रिसर्च कंपनी ने बताया कि अगले साल इकोनमॉमी में ‘V(accine)-Shaped’ रिकवरी देखने को मिलेगी वहीं, भारत के कैलेंडर वर्ष 2022 के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 7.3 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है, जो फिर से दुनिया की 11 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक है।
ग्लोबल ग्रोथ में आ सकती है हल्की गिरावट
इसके साथ ही उन्होंने रिपोर्ट में कहा कि कोरोनावायरस संक्रमण की दूसरी लहर अब संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में फैल रही है, जिसकी वजह से सरकारों ने पहले ही नए आंशिक लॉकडाउन के साथ सतर्कता बरतनी शुरू कर दी है इस वजह से ग्लोबल ग्रोथ में थोड़ी निगेटिविटी देखने को मिल सकती है।
रिपोर्ट के मुताबिक, जिस तरह वैश्विक अर्थव्यवस्था ने इस साल की शुरुआत में लॉकडाउन से तेजी से वापसी की, उम्मीद थी कि यूरोपीय लॉकडाउन समाप्त होने और वैक्सीन उपलब्ध होने पर इकोनॉमी में तेजी आएगी।
लॉकडाउन के कारण देश की GDP में रिकॉर्ड 23.9 फीसदी गिरावट दर्ज होने के अब दूसरी तिमाही में गिरावट का स्तर घटकर इकाई अंकों में रह जाने की उम्मीद है लेकिन इतना लगभग तय लग रहा है कि तकनीकी तौर पर देश आर्थिक मंदी में फंस चुका है, क्योंकि सितंबर तिमाही में लगातार दूसरी बार GDP में गिरावट आ सकती है।
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