सुप्रीम कोर्ट ने किया फैसला, यह टेलीकॉम कंपनियों हो सकती है बंद

आज हम आपको बहुत ही खास जानकारी देने वाले है
हाल ही में जियो ने दूसरे नेटवर्क पर कॉलिंग के लिए IUC के तहत अपने ग्राहकों से 6 पैसे प्रति मिनिट लेने की घोसणा की थी। जिसके बाद जियो ग्राहकों के बीच इसको लेकर थोड़ी निराशा भी थी। लेकिन आज जो खबर हम आपके लिए लाए हैं वो बहुत ही बड़ी खबर है। यह खबर भारतीय टेलीकॉम इंडस्ट्री में भूकंप लाने जैसी खबर है।

भारत में संचालित लगभग सभी नेटवर्क कंपनियां जैसे एयरटेल, आइडिया, वोडाफोन, बीएसएनएल आदि इनमे से कईं कंपनियां बंद होने की कगार पर आ सकती है।

 बात करते हैं कि हुआ क्या है? दरअसल हुआ ये है कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आया है, और ये निर्णय ही कईं टेलीकॉम कंपनियों के बंद होने की वजह भी बन सकता है। ये निर्णय आया है AGR पर, यानी एडजस्टेड ग्रोस रेवेन्यू पर। अब आप पूछेंगे कि ये AGR क्या है? तो हम आपको बताते है कि AGR एक गवर्नमेंट मॉडल है, जिसके तहत गवर्नमेंट नेटवर्क ऑपरेटर्स कंपनीयों से लाइसेन्स और नेटवर्क फ्रीक्वेंसी यानि स्पेक्ट्रम की फीस लेती है। AGR के तहत नेटवर्क कंपनियां को अपनी सालाना आय का लगभग 4 प्रतिशत लाइसेंस और 8 प्रतिशत स्पेक्ट्रम फीस चुकानी होती है। इसे आप टेक्स की तरह समझ सकते है।

जब टेलीकॉम कंपनियों की शुरुआत हुई थी, तब गवर्नमेंट इन कंपनियों से लाइसेंस और स्पेक्ट्रम का सालाना एक फिक्स अमाउंट लेती थी। लेकिन बाद में गवर्नमेंट ने इसे AGR यानि सालाना आय पर प्रतिशत से बदल दिया। लेकिन गवर्नमेंट और कंपनियों के बीच AGR को लेकर बहस थी। बहस ये थी कि AGR माने किसे।

दरअसल नेटवर्क कंपनियों के हिसाब से AGR होना चाहिए था कि कंपनियां सालाना अपने ग्राहकों से जो कमाती है उस पर लाइसेंस और स्पेक्ट्रम की फीस ली जाए, और गवर्नमेंट का कहना था कि कंपनी के नाम पर जो कुछ भी हो चाहे वह कोई जमीन हो या बैंक में कंपनी की कोई एफड़ी हो यानि कुल मिलाकर कंपनी की हर तरफ से इनकम पर कंपनियों को गवर्नमेंट को लाइसेंस और स्पेक्ट्रम की फीस देनी थी।

2005 में कंपनियों और गवर्नमेंट के बीच इस लड़ाई को लेकर कोर्ट में केस भी दर्ज हुआ। अब जाकर 2019 में इस केस का फैसला आया है। कोर्ट का ये फैसला गवर्नमेंट के फ़ेवर में आया है।

कोर्ट ने कहा कि AGR पर गवर्नमेंट का कहना ही सही है। अब दिक्कत ये है कि अब तक कंपनियां ग्राहकों से जो कमा रही थी, उस पर ही AGR का भुगतान कर रही थी। लेकिन कोर्ट के फैसले के बाद सभी कंपनियों को पिछले सभी सालों का गवर्नमेंट के हिसाब से AGR का भुगतान करना पड़ेगा। और सभी कंपनियों की कुल मिलाकर भुगतान की जो रकम सामने आई है वो लगभग 90000 करोड़ रुपए है।

अब सभी कंपनियों को अपनी बकाया राशी का भुगतान करना है, जिसमे से एयरटेल को 21000 करोड़ रुपए, आइडिया और वोडाफोन को 27000 करोड़ रुपए, बंद हो गई रिलायंस को 16000 करोड़ और लगभग इसी तरह सभी छोटी-बड़ी कंपनियों को कुल मिलाकर 90000 करोड़ का भुगतान करना है।

सब कंपनियों में जियो को इस निर्णय से कोई दिक्कत नहीं होने वाली है, क्योंकि जियो अभी दो साल पहले ही आया है, और जियो को जो रकम चुकानी है वह मामूली सी रकम मात्र 13 करोड़ रुपए है।

बात करें जियो के अलावा दूसरी सभी कंपनियों की तो वैसे भी जब से मार्केट में जियो आया है तब से दूसरी सभी कंपनियों की हालत वैसे भी बहुत ही खराब है। दूसरी कंपनिया वैसे ही घाटे में चल रही है और अब उन्हें इतनी भारी रकम भी चुकानी है। ऐसे में कईं कंपनियां बंद भी हो सकती है। वोडाफोन ने तो ये कहा भी है कि वह इंडिया छोड़ने की सोच रहा है।

अब इसके बाद सब कुछ गवर्नमेंट पर निर्भर करता है कि वे कंपनियों को इस मामले में कोई राहत देती है या नहीं। हो सकता है कंपनियों और गवर्नमेंट के बीच इसको लेकर कोई हल निकले या गवर्नमेंट ये पैसे माफ कर दे। पर अगर गवर्नमेंट ये पैसा लेती है तो कईं टेलीकॉम कंपनियां बंद भी हो सकती है। अब इस मामले में आगे क्या होगा ये तो आने वाले समय में ही मालूम पड़ेगा।

अब बात करते है कि यदि ऐसा होता है कि सभी कंपनियां बंद हो जाती है तो भारत में बस एक ही टेलीकॉम कंपनी बचती है, और वो है जियो। पूरे भारत पर जियो का ही राज होगा। ग्राहकों के नजरिये से ये बिल्कुल भी अच्छी खबर नही होने वाली है। क्यूंकि पूरे भारत में जब एक ही कंपनी का राज होगा और मार्केट में कोई कॉम्पीटीशन भी नहीं होगा तो फिर होगा वही जो जियो कहेगा।

डाटा और कालिंग के रेट भी काफी बढ़ सकते है, क्यूंकी ग्राहक जाएगा कहाँ, कंपनी तो एक ही है। ग्राहकों के नजारिएं से ये बहुत ही बुरी खबर होने वाली है।

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