फिर से आएगी एक साथ बीजेपी और बसपा , यूपी की राजनीति से मिल रहे है संकेत

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यूपी राजनीति में नए संकेत मिल रहे हैं। राज्यसभा चुनाव को लेकर बसपा की रणनीति भविष्य में भाजपा और बसपा के बीच नजदीकियां बनने की ओर इशारा कर रहा है। राज्य सभा चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती का विधायकों की संख्या जिताने भर की न होने के बाद भी रामजी गौतम को मैदान में उतारने को इसी का हिस्सा माना जा रहा है। आगे क्या होगा यह तो समय बताएगा, लेकिन भाजपा और बसपा की नजदीकियों को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है।

बसपा ने दिए नए संकेत

राज्यसभा की 10 सीटों पर होने वाले चुनाव में बसपा के पास जिताऊ आंकड़े नहीं हैं। इसीलिए यह माना जा रहा था कि बसपा राज्यसभा के लिए उम्मीदवार नहीं उतारेगी, लेकिन मायावती ने रामजी गौतम को मैदान में उतारकर सभी को चौंका दिया।

रणऩीतिकार यह सोच-विचार ही रहे थे कि बसपा जीत के लिए कहां से सदस्य संख्या लाएगी। इसी बीच भाजपा ने नौ के स्थान पर आठ उम्मीदवारों को उतारकर भविष्य की राजनीति पर नई चर्चा छेड़ दी। बसपा के पांच विधायकों द्वारा बुधवार को बगावत करना और उसके बाद तर्कों के आधार पर रामजी गौतम का पर्चा वैध ठहराया जाना, कुछ न कुछ होने की ओर इशारा जरूर कर रहा है।

बसपा बागियों पर हो सकती है कार्रवाई

बसपा के भले ही पांच विधायकों ने सीधे तौर पर बगावत के सुर बुलंद किए हो पर अंदर खाने में इनकी संख्या सात बताई जा रही है। बसपा के ये सातों विधायक सपा के संपर्क में हैं। माना जा रहा है कि ये सभी विधायक जल्द सपा में शामिल हो सकते हैं। वहीं, बसपा इन बागियों पर जल्द कार्रवाई कर सकती है। इस संबंध में विधायक दल के नेता लालजी वर्मा ने कहा है कि किसी पर भी कार्रवाई करने का अधिकार पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती के पास है। इसलिए उनका फैसला अंतिम होगा।

सपा ने चली चाल

भाजपा प्रत्याशी घोषित करती उससे पहले ही 26 अक्तूबर को रामजी गौतम ने नामांकन कर दिया। बसपा के पास भी जरूरी 36 विधायकों का आकंड़ा नहीं था। हां, बसपा के 17 और भाजपा के बचे 17 विधायक और तीन निर्दलीय रामजी गौतम के पक्ष में आ जाते तो उनकी फतेह येन-केन-प्रकारेण संभव हो सकती थी। भाजपा के पास वैसे अपना दल के 9 विधायकों के अलावा कांग्रेस के दो बागी और सपा से अलग हुए एक विधायक मिलाकर 12 और विधायकों भी थे।

ऐसे में भाजपा के सहारे बसपा का प्रत्याशी राज्यसभा पहुंच सकता था। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने यही रणनीति भांप कर प्रकाश बजाज को मैदान में उतारा। इससे सपा को दो फायदे हुए। अव्वल तो उसने प्रकाश के सहारे मतदान की सुनिश्चित करने की कोशिश की। दूसरे यह कि बसपा-भाजपा के पक्ष में जाने वाले निर्दलीय विधायकों और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के विधायकों को भी अपने पक्ष में आने के संकेत दे दिए।

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