पत्नियां क्यो नही लेती अपने पति का नाम, आइये जानते है

आज हम आपको ऐसी बात की जानकारी देंगे जिसके बारे में आपको ज्ञान नही है महर्षि वेदव्यास जी जिन्हें भगवान का अवतार माना जाता है। उनके मुख से निकली हुई वाणी को भगवान श्री गणेश ने पुराणों में लिपिबद्ध किया है। इस पुराण के अनुसार वेद व्यास कहते हैं, कि जिस घर में पतिव्रता स्त्री होती है उनका जीवन सफल हो जाता है। पति की आयु बढ़े इसलिए वह कभी पति को नाम से उच्चारण नहीं करती है। पति के खड़े रहने पर स्वयं भी खड़ी रहती है पति के सो जाने पर स्वयं सोती है।

तथा पहले ही जाग जाती है पति यदि दूसरे देश में हो तो वह अपने शरीर का सिंगार नहीं करती है। वह दरवाजे पर सोती या बैठती नहीं है, वह दरवाजे पर देर तक खड़ी नहीं रहती है। जो वस्तु देने योग्य नहीं होती वह स्वयं कभी किसी को नहीं देती है।

पति के आज्ञा के बिना वह तीर्थ यात्रा को या विवाह उत्साह को देखने के लिए नहीं जाती है। सुबह स्नान करके सबसे पहले पति के मुख का ही दर्शन करें। दूसरे किसी का नहीं पतिदेव उपस्थित ना हो तो मन ही मन उनका ध्यान करके सूर्य देव का दर्शन करें। कभी अकेली ना रहे स्त्रियों के लिए यही उत्तम व्रत, यही महान धर्म और यही पूजा है।

पति की आज्ञा का उल्लंघन ना करें उसके लिए भगवान विष्णु और शंकर से बढ़कर उसका पति है। जो पति की आज्ञा का उल्लंघन करके व्रत या त्यौहार करती है वह पति की आयु को हर लेती है। स्त्रियों को पति से ऊंचे आसन पर नहीं बैठना चाहिए। दूसरों के घर नहीं जाना चाहिए पतिव्रता स्त्री को देखकर यमदूत भी भाग जाते हैं। केवल पतिव्रता नारी के पुण्य से उसके पिता माता और पति इन तीनों कुलों की तीन पीढ़ियां स्वर्गीय सुख भोगती है।

पतिव्रता का चरण जहां जहां धरती पर चरण स्पर्श करता है, वह स्थान तीर्थ भूमि की तरह माना जाता है। जैसे गंगा में स्नान करने से शरीर शुद्ध हो जाता है। उसी प्रकार पतिव्रता का दर्शन करने से संपूर्ण ग्रह दूर हो जाता है। इसी तरह स्त्री के कर्तव्य वेदव्यास जी ने बताए हैं, इन पर माता बहनों को विशेष ध्यान देकर इनका आचरण करना चाहिए।

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