खामोश हो रही है शत्रुघ्न सिन्हा की सियासत, बेटे की जीत पर टिकी आगे की कहानी

आज हम आपको बहुत ही खास जानकारी देने जा रहे है अभिनेता से नेता बने बिहारी बाबू यानी शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे लव सिन्हा की किस्मत ईवीएम में बंद हो चुकी है अब सबको इंतजार 10 नवंबर का है, जब उम्मीदवारों की किस्तम का फैसला सुनाया जाएगा।

लव सिन्हा को पटना की बांकीपुर सीट से कांग्रेस के टिकट पर मैदान में थे इस चुनाव में सोनाक्षी सिन्हा को छोड़कर बिहारी बाबू का पूरा परिवार अपना सबकुछ झोंक चुका है और अब अपनी सियासी विरासत को बचा पाने की आस लगाए बैठा है।

शत्रुघ्न सिन्हा ने जब से बीजेपी का दामन छोड़ा है, तब से उनकी सियासत का ग्राफ लगातार नीचे जा रहा है बीजेपी से अलग होने के बाद शत्रुघ्न सिन्हा खुद कांग्रेस के टिकट पर पटना से पिछला लोकसभा चुनाव रिकॉर्ड मतों से हार चुके हैं।

पत्नी पूनम सिन्हा ने लखनऊ से समाजवादी पार्टी के टिकट पर अपनी किस्मत आजमाई थी, वहां भी उन्हें मुंह की खानी पड़ी चुनाव हारने के बाद पूनम सिन्हा ने दोबारा लखनऊ का रुख कभी नहीं किया।

2019 का लोकसभा चुनाव पति-पत्नी दोनों एक साथ पटना और लखनऊ से हारे थे इस बार बिहारी बाबू ने अपनी परंपरागत सीट पटना की सबसे प्रतिष्ठित विधानसभा बांकीपुर से अपने बड़े बेटे लव सिन्हा पर दांव लगाया है सिन्हा दंपति खुद भले ही हार चुके हैं, लेकिन बेटे को लेकर आशान्वित हैं कि शायद बेटे की जीत उन्हें फिर से सियासी संजीवनी दे सके।

हालांकि, उन्होंने बेटे के लिए बिहार की ऐसी सीट चुनी जिससे बीजेपी आज तक हारी ही नहीं है सियासी तौर पर चुनिंदा कायस्थ बहुल सीटों में से एक बांकीपुर में लव सिन्हा का मुकाबला बीजेपी के धुरंधर नेता रहे नवीन सिन्हा के बेटे नितिन नवीन से है, जो तीन बार से विधायक हैं और जमीन पर जिनकी पहचान जुझारू नेता की है।

शत्रुघ्न सिन्हा और उनके परिवार को यकीन है कि इस बार पटना के मतदाता उनके बेटे को जीत दिलाएंगे क्योंकि पिता की विरासत के साथ-साथ तेजस्वी का तेज और युवा मतदाताओं में बदलाव की चाहत उनके बेटे की सियासी नाव पार लगा सकती है।

लेकिन लव सिन्हा की राह इतनी आसान नहीं है बांकीपुर में कांग्रेस का संगठन बेहद खस्ताहाल है सब कुछ पिता की सियासी विरासत या कुछ हद तक उनके स्टारडम पर टिका है जबकि बीजेपी की पैठ कहीं ज्यादा गहरी है।

आजतक ने वोटिंग के ऐन पहले पूरे परिवार से एक साथ बात की थी लव सिन्हा ने कहा कि वे इस चुनाव को लेकर बिल्कुल नर्वस नहीं हैं और फैसला कुछ भी हो, वे जल्दबाजी में भी नहीं हैं।

पिता की पहचान से बेटे की आस

अभी तक लव सिन्हा की स्वतंत्र रूप से अपनी कोई पहचान नहीं बन पाई है, लेकिन पिता की पहचान बहुत बड़ी है और लव सिन्हा का पूरा चुनाव पिता की पहचान पर ही टिका था इसीलिए कहा जा रहा है कि यह चुनाव लव सिन्हा का नहीं, बल्कि शत्रुघ्न सिन्हा का ही है अगर जीत मिलती है तो यह शत्रुघ्न सिन्हा के सियासी कॅरियर की संजीवनी होगी और अगर हारे तो बिहारी बाबू के लिए इससे उबरना बेहद मुश्किल होगा।

ऐसा माना जाता है  जब चुनाव में स्टार प्रचारक का कोई कंसेप्ट नहीं हुआ करता था, तब बिहारी बाबू बीजेपी के इकलौते स्टार प्रचारक हुआ करते थे बीजेपी के तमाम बड़े नेता चाहते थे कि उनके मंच पर बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा की मौजूदगी जरूर हो।

बीजेपी के साथ अपने तीन दशक के जुड़ाव में शत्रुघ्न सिन्हा अपनी खास भाषण शैली की वजह से बेहद लोकप्रिय होकर उभरे थे अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी दोनों से उनका नजदीकी रिश्ता था, लेकिन नरेंद्र मोदी युग के साथ ही उनका सियासी सितारा भी धूमिल हो गया।

सियासत में आकर शत्रुघ्न ने खुद को कभी बिहार की राजनीति तक सीमित नहीं किया मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जरूर गाहे-बगाहे उनकी जुबां पर आती रही, लेकिन बिहार बीजेपी के बड़े नेताओं से उनकी कभी नहीं बनी शायद इसी का नतीजा है कि उन्हें आजीवन बीजेपी के साथ सियासत करने के बाद बीजेपी छोड़नी पड़ी।

अब शत्रुघ्न सिन्हा की कोशिश बेटे को राजनीतिक रूप से स्थापित करने की है ताकि उनकी राजनीतिक प्रतिष्ठा कम से कम उनके घर में बची रहे, लेकिन चुनौतियां कम नहीं हैं।

आपको कैसी लगी जानकारी हमें जरूर बताएं ऐसी ही नई नई जानकारी पाने के लिए हमें फ़ॉलो जरूर करें।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top